
डॉ डीपी शर्मा, प्रोफेसर एवं डिजिटल डिप्लोमेसी विशेषज्ञ

प्रधानमंत्री मोदी की सिर कटी हुई तस्वीर – घृणा, अनैतिक आचरण और संवैधानिक अनादर का एक नया निम्न स्तर
लोकतांत्रिक मानदंडों और मानवीय शालीनता से एक खतरनाक प्रस्थान में, देश की सबसे पुरानी और सबसे चर्चित राजनीतिक पार्टियों में से एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिर कटी हुई तस्वीर पोस्ट की। यह कृत्य केवल निर्णय में चूक या दुर्भाग्यपूर्ण गलती नहीं है। यह घृणा की पराकाष्ठा है, एक अनैतिक, गैरकानूनी और असभ्य राजनीतिक हमला है जो पार्टी की जिम्मेदारी की भावना और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उसके सम्मान के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। ये किसी ने सोचा भी न होगा कि सौ साल से अधिक पुरानी कोंग्रेस का यह थका हुआ काफिला अधपतन के मार्ग से फिलसलते हुए एक ऐसी दलदल में जा फँसेगा जहाँ दबे दबे पनपते रहे अलोकतांत्रिक महारोग पार्टी की सम्पूर्ण काया को संग्दिग्ध रूप से सड़ांध में परिवर्तित कर देंगे/
राजनीतिक हथियार के रूप में घृणा : राजनीतिक प्रतिस्पर्धा लोकतंत्र का सार है। एक कार्यशील गणतंत्र में जोरदार विरोध, आलोचना और सार्वजनिक बहस अपेक्षित है – यहाँ तक कि आवश्यक भी। लेकिन जब यह प्रतियोगिता प्रतीकात्मक हिंसा की दृश्य अभिव्यक्तियों में बदल जाती है, तो यह लोकतंत्र के बारे में नहीं रह जाती है और नफरत फैलाने का एक साधन बन जाती है। पार्टी के आधिकारिक चैनल द्वारा पोस्ट की गई प्रधानमंत्री की सिर कटी हुई तस्वीर व्यंग्य नहीं है, विरोध नहीं है, अभिव्यक्ति नहीं है – यह घृणा का सबसे भयावह दृश्य रूप है। नीतियों पर सवाल उठाना, शासन को चुनौती देना या विचारधारा का सामना करना एक बात है। लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता को रूपक या शाब्दिक रूप से शारीरिक नुकसान पहुंचाने वाली छवियों का सहारा लेना पूरी तरह से दूसरी बात है। इस तरह की हरकतें दुश्मनी को बढ़ावा देती हैं, अशांति को भड़काती हैं और नागरिक समाज के मूल्यों को नष्ट करती हैं। नैतिक और नैतिक पतन नैतिक दृष्टिकोण से, यह कृत्य राजनीतिक संचार के नैतिक दायरे में सबसे निचले स्तर को दर्शाता है। कांग्रेस पार्टी, जिसका इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से लेकर नेहरू, पटेल और गांधी जैसे दिग्गजों के नेतृत्व तक फैला हुआ है, से उम्मीद की जाती है कि वह मानक स्थापित करेगी – उन्हें नष्ट नहीं करेगी। राजनीति युद्ध नहीं है। विरोधी दुश्मन नहीं है। और नेतृत्व – चाहे कितना भी विवादास्पद क्यों न हो – का सामना तर्क से किया जाना चाहिए, क्रोध से नहीं। जब राजनीतिक संस्थाएँ इस तरह के असभ्य कृत्यों का सहारा लेती हैं, तो वे न केवल अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि सार्वजनिक चर्चा को भी खराब करती हैं, जिससे नागरिक अधिक विभाजित, चिंतित और सनकी हो जाते हैं।
अवैध और कानूनी रूप से निंदनीय: ये सिर कटी फोटो कहीं प्रधानमंत्री की हत्या का सुनियोजित षड़यंत्र और उसका संकेत तो नहीं ? भारतीय कानून ऐसे मामलों पर चुप नहीं रह सकता/ भारतीय दंड संहिता, धारा 153A (शत्रुता को बढ़ावा देना), 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) जैसे प्रावधानों के माध्यम से हिंसा भड़काने या बदनाम करने वाली कार्रवाइयों को संबोधित करने के लिए रूपरेखा प्रदान करती है। सत्यापित, आधिकारिक राजनीतिक हैंडल पर पोस्ट की गई प्रतीकात्मक रूप से हिंसक सामग्री भी चुनाव आचरण नियमों और सोशल मीडिया विनियमों के विरुद्ध हो सकती है, खासकर जब यह सार्वजनिक व्यवस्था को विकृत करती है।
न्यापालिका, चुनाव आयोग, पुलिस तंत्र, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए – न केवल पोस्ट के लक्ष्य के कारण, बल्कि इससे जो खतरनाक मिसाल कायम होती है, उसके कारण भी, कि आखिर हम किधर जा रहे हैं/ अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो इस तरह की इमेजरी जल्द ही एक राजनीतिक चलन बन सकती है, जो जनसंचार के माध्यम के रूप में नफरत को सामान्य बना देगी।
संवैधानिक गरिमा पर हमला: सबसे बढ़कर, भारत के प्रधानमंत्री – चाहे कोई भी पद पर हो – 1.4 बिलियन लोगों की संप्रभु इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह किसी का व्यक्तिगत अपमान नहीं है वल्कि, पूरे लोकतंत्र 1.4 बिलियन भारतीयों का अपमान है क्योंकि ऐसा नहीं कि जिन्होंने प्रधानमंत्री की विचारधारा और उनके एजेंडे को वोट नहीं दिया, प्रधानमंत्री उनके प्रधानमंत्री नहीं है/ प्रधानमंत्री देश का होता है, न कि किसी दल का/ प्रधानमंत्री पूर्व हो या वर्तमान, उसके निर्णय किसी को स्वीकार्य हों या नहीं, फिर भी उसकी फोटो इस प्रकार की असभ्यता से नहीं लगाई जा सकती/ सरकार के मुखिया को इस तरह की क्रूर छवि में चित्रित करना न केवल व्यक्ति की बल्कि पद की गरिमा को भी चुनौती देना है। यह संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सीधा अपमान है जिसके माध्यम से सत्ता प्रदान की जाती है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र में, सम्मानजनक असहमति और जवाबदेह नेतृत्व की आवश्यकता सर्वोपरि है। हिंसक प्रतीकात्मकता के साथ इसे कमज़ोर करना गणतंत्र की नींव को कमज़ोर करना है।
जवाबदेही और आत्मनिरीक्षण का समय: कांग्रेस पार्टी को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। औपचारिक माफ़ी की सिर्फ़ अपेक्षा ही नहीं की जाती – यह ज़रूरी भी है। पद की स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए, ज़िम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। चुप्पी या ध्यान भटकाना केवल एक अपमानजनक कृत्य की मौन स्वीकृति का संकेत होगा।
जब तक इसके पालनकर्ता शिष्टाचार और बुनियादी मानवता को त्याग देते हैं, तब तक लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता। अगर राजनीतिक दल- जो हमारी लोकतांत्रिक मशीनरी के इंजन हैं- नफरत की इस हद तक गिर जाएंगे, तो इससे सिर्फ एक व्यक्ति या पार्टी को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को भी नुकसान होगा।
इस पल को एक चेतावनी के रूप में लें: नफरत को सामान्य नहीं बनाया जा सकता, राजनीति की गर्मी में भी नहीं। और संवैधानिक पदों की गरिमा को कभी भी पक्षपात की वेदी पर बलिदान नहीं किया जाना/ अनैतिक, अमानवीय, और असंवैधानिक तरीके से सत्ता की भूख और राजनैतिक पागलपन इतना पागल नहीं हो सकता?